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सोमवार, 27 दिसंबर 2010

~~~~शायरी ~~~~~

सोचा याद न करके थोड़ा तड़पाऊं उनको!
किसी और का नाम लेकर जलाऊं उनको!
पर चोट लगेगी उनको तो दर्द मुझको ही होगा!
अब ये बताओ किस तरह सताऊं उनको! 


जीना चाहते हैं मगर ज़िन्दगी रास नहीं आती!
मरना चाहते हैं मगर मौत पास नहीं आती!
बहुत उदास हैं हम इस ज़िन्दगी से!
उनकी यादें भी तो तड़पाने से बाज़ नहीं आती!


एक दिन हमारे आंसूं हमसे पूछ बैठे!
हमे रोज़ - रोज़ क्यों बुलाते हो!
हमने कहा हम याद तो उन्हें करते हैं तुम क्यों चले आते हो!

जब तक तुम्हें न देखूं!
दिल को करार नहीं आता!
अगर किसी गैर के साथ देखूं!
तो फिर सहा नहीं जाता!



इश्क मुहब्बत तो सब करते हैं!
गम - ऐ - जुदाई से सब डरते हैं
हम तो न इश्क करते हैं न मुहब्बत!
हम तो बस आपकी एक मुस्कुराहट पाने के लिए तरसते हैं!


न वो आ सके न हम कभी जा सके!
न दर्द दिल का किसी को सुना सके!
बस बैठे है यादों में उनकी!
न उन्होंने याद किया और न हम उनको भुला सके!



बड़ी कोशिश के बाद उन्हें भूला दिया!
उनकी यादों को दिल से मिटा दिया!
एक दिन फिर उनका पैगाम आया लिखा था मुझे भूल जाओ!
और मुझे भूला हुआ हर लम्हा याद दिला दिया! 


बड़ी मुश्किल में हूँ!
मैं कैसे इज़हार करू!
तुम तो खुशबु हो!
तुमको कैसे कैद करू!

शनिवार, 25 दिसंबर 2010

मधुशाला श्री हरिवंस राय बच्चन ,......

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।


प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ -
'राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।'। ६।

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
'दूर अभी है', पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।।७।

मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।।८।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।।९।

सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।।१०।

जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।।११।

मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।।१२।

हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।।१३।

लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।।१४।

जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।।१५।

बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
'होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले'
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।।१६।

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।।१७।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।।१८।

बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला'
'और लिये जा, और पीये जा', इसी मंत्र का जाप करे'
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।।१९।

बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।।२०।

बड़े बड़े पिरवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।।२१।

सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला,
सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ' हाला,
धूमधाम औ' चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,
झगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।।२२।

भुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, मदचंचल प्याला,
छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला,
पटे कहाँ से, मधु औ' जग की जोड़ी ठीक नहीं,
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।।२३।

बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।।२४।

हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।।२५।

एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।।२६।

~ यूँ ही बेसबब न फिरा करो ~-- बशीर बद्र!!!!!!!!!

यूँ ही बेसबब न फिरा करो, कोई  शाम घर में भी रहा करो 
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो

अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो

मुझे इश्तहार सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो

कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन-सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो

ये ख़िज़ा की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आंसुओं से हरा करो

नहीं बेहिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

~~~~पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं~~~

जनाब राहत इन्दोरी की जानिब से ~~~
पुराने शहरों के मंज़र निकलने लगते हैं
ज़मीं जहाँ भी खुले घर निकलने लगते हैं

मैं खोलता हूँ सदफ़ मोतियों के चक्कर में
मगर यहाँ भी समन्दर निकलने लगते हैं

हसीन लगते हैं जाड़ों में सुबह के मंज़र
सितारे धूप पहनकर निकलने लगते हैं

बुरे दिनों से बचाना मुझे मेरे मौला
क़रीबी दोस्त भी बचकर निकलने लगते हैं

बुलन्दियों का तसव्वुर भी ख़ूब होता है
कभी कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं

अगर ख़्याल भी आए कि तुझको ख़त लिक्खूँ
तो घोंसलों से कबूतर निकलने लगते हैं!!!!!!!!!
दो  अश्क  मेरी  याद  में  बहा  जाते  तो  क्या  जाता ,
चंद  कलियाँ  लाश  पर  बिछा  जाते  तो  क्या  जाता  !

आये  हो  मय्यत  पर  सनम  ओढ़  कर  नकाब  तुम ,
अगर  ये  चाँद  का  टुकड़ा  दिखा  जाते  तो  क्या  जाता  !

पूछते  थे  लोग  तुमसे  किसका  है  जनाज़ा  यह ,
मरने  वाला  कौन  था  बता  जाते  तो  क्या  जाता  !

सबके  सामने  मेरी  उल्फत  को  रुसवा  कर  दिया
नज़र  की  तल्खीयां  ,छुपा  जाते  तो  क्या  जाता  !

हर  ज़ख्म  ने  मेरे  तुम्हे  दी  हैं  दुआएं  उम्र  भर ,
हाय , इक  बार  सीने  से   लगा  जाते  तो  क्या  जाता  !

तुमको  याद  करते -करते  जान  दे  दी ,,,,
इक्क   चिराग  ही  मज़ार  पर  जला  जाते  तो  क्या  जाता  !!,,

शायरी जो सीधा दिल पर दस्तक दे जाये !!!!

हमारे कुछ गुनाहों की सजा भी साथ चलती है ,हम अब तन्हा नही चलते दवा भी साथ चलती है
अभी जिन्दा है माँ मेरी मुझे कुछ नही होगा ,मैं घर से जब चलता हु दुआ भी साथ चलती है !!!!
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दोस्तों .मै ना जुगनू हु ना दिया हू ना कोई तारा हू
रौशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यू है !!!!!! 
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भूले हैं रफ्ता रफ्ता उन्हें मुद्दतो में हम ,
किश्तों में खुद कुशी का मज़ा हम से पूछिए ,,,,
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बेइंतेहा प्यार करते है हम आप से ,
पर इज़हार ना करेंगे कभी ,
क्युकी हमने कसम खाई है के ,
दुबारा खुद को रुसवा ना करेंगे कभी !!!!!!!!!!
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ऐ खुदा काश दिल तू ने कांच के बनाये होते
कम से कम दिल तोड़ने वालो के हाथ मैं ज़ख़्म आये होते ….
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,साकी दर -ऐ -मैयखाना ज़रा खोल के रखना
शायद मुझे जन्नत की हवा रास न आये !!!!!!!!
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