हाले - दिल सब को सुनाने आ गये खुद मज़ाक अपना उडाने आ गये फ़ूंक दी बीमाशुदा दूकान खुद फ़िर रपट थाने लिखाने आ गये मार डाली पहली बीवी, क्या ह...
मंगलवार, 18 जनवरी 2011
एक ग़लतफ़हमी थी !!
एक ग़लतफ़हमी थी जो आज मंज़ूर हो गई ,
तू मेरी नज़रों से और भी ज्यादा दूर हो गई . ये तेरी आँखें जिसमे कभी शराब से ज्यादा नशा था
आज वक़्त की मार से बेनूर हो गई .
तेरी एक हंसी पे कितने ही हो जाते थे कुर्बान ,
किसके ग़म में तू आज रोने को मजबूर हो गई .
डोली उठती तो है पर एक मय्यत साथ लेकर .
इश्क की बेबसी आज दस्तूर हो गई !!!!.
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे, जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों । एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा, ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये। इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी, लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे । उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो, न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये । ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं, पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है । लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में, तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में। पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी, आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते । तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था, फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे,
जवाब देंहटाएंजब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।
एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा,
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये।
इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी,
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।
ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं,
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।
पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।
तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला