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सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

दिखाई दे हर शय में तुझे,

दिखाई दे हर शय में तुझे,
उसे ऐसे आँखों में भर लें|
महकता रहे ज़हन हमेशा,
उसे ऐसे सांसों में भर लें|
कुछ ना रहे माज़ी का बाकी,
उसे ऐसे यादों में भर लें|
सिर्फ एक लकीर हो किस्मत की,
उसे ऐसे हाथों में भर लें|
हर लफ्ज़ में घुल जाए ज़िक्र,
उसे ऐसे बातों में भर लें|
काली गुमसुम तन्हा ना बीते,
उसे ऐसे रातों में भर लें|

शनिवार, 29 जनवरी 2011

हाले - दिल सब को सुनाने आ गये ~~

हाले - दिल सब को सुनाने आ गये
खुद मज़ाक अपना उडाने आ गये

फ़ूंक दी बीमाशुदा दूकान खुद
फ़िर रपट थाने लिखाने आ गये

मार डाली पहली बीवी, क्या हुआ
फ़िर शगुन ले के दिवाने आ गये

खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम
शहर में रिक्शा चलाने आ गये

तेल की लाइन से खाली लौट कर
बिल जमा नल का कराने आ गये

प्रिंसीपल जी लेडी टीचर को लिये
देखिए पिक्चर दिखाने आ गये

हांकिया ले कर पढाकू छोकरे
मास्टर जी को पढाने आ गये

घर चली स्कूल से वो लौट कर
टैक्सी ले कर सयाने आ गये
कांख में ले कर पडौसन को जनाब
मौज मेले में मनाने आ गये

बीवी सुन्दर मिल गई तो घर पे लोग
खैरियत के ही बहाने आ गये

शोख चितकबरी गज़ल ले कर 'कृष्णपाल 
तितलियों के दिल जलाने आ गये

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

जज्बाती शायरी !!

परिंदों को मंजिल मिलेंगी यकीनन
यह फैले हुए उनके पर बोलते है
वोही लोग रहते है खामोश अक्सर
ज़माने में जिनके हुनर बोलते है ...
प्यार इक दर्द की अनुभूति है .
जो दिल रौता है ,तो आँखे बयां कर देती है !
 
प्यार इक ख्वाबो का व्रक्ष है ,
जो काटेंगे तो हज़ार बार उगता रहता है !!
हम ’ने दूंढ लिया है लोगों के दुःख दर्द का इलाज , क्या बुरा है जो ये अफवाह उड़ा दी जाए 
हुनर नहीं आता हमें दिलों से खेलने का , इसीलिए इश्क की बाज़ी हम हार गए ,
शायद उन्हें था मेरी ज़िंदगी से बहुत प्यार , इसीलिए मुझे जीते -- जी ही मार गए 
 
दीवाने हो गए हम जिनकी याद में , वो हम ही से बेगाने हो गए ,
शायद उन्हें तलाश है अब नए प्यार की क्यूंकि उनकी नज़र में हम पुराने हो गए .
 हीरे  की  शफक  है  तो  अँधेरे  में  चमक ,
धुप  में  आके  तो  शीशे  भी  चमक  जाते  हैं .
 भुझी  शमा  भी  जल  सकती  है ,
तूफान  से  कश्ती  भी  निकल  सकती  है ,
होके  मायूस  यूं  न  अपने  इरादे  बदल ,
तेरी  किस्मत  कभी  भी  बदल  सकती  है 
 ज़िन्दगी  में  कई  मुश्किलें  आती  हैं ,
और  इंसान  जिंदा  रहने  से  घबराता  है ,
न  जाने  कैसे  हज़ारों  काँटों  के  बीच ,
रह  कर  भी  एक  फूल  मुस्कुराता  है .
 गम  के  अंधेरो  में  खुद  को  यूह  न  बेक़रार  कर ...
गम  के  अंधेरो  में  खुद  को  यूह  न  बेक़रार  कर ....


सुभाह  ज़रूर  आएगी
सुभाह  का  इंतज़ार  कर  !
सर  झुकाओगे  तो  पत्थर  भी  देवता  हो  जायेगा ,
इतना  न  चाहो  उससे , वोह  बेवफा  हो  जायेगा .
हम  भी  दरिया  हैं , हमें  अपना  हुनर  मालूम  है ,
जिस  तरफ  चल  पडे  रास्ता  हो  जायेगा .


लहरों   को  शांत   देख   कर  यह  मत  समजना
की  समंदर  में  रवानी  नहीं  है ,
ज़ब  भी  उठेगे  तुफ्फान  बनकर  उठेगे ,
अभी  उठने  की  ठानी  नहीं  है .



 

बुधवार, 26 जनवरी 2011

एहसास !!

मुझको तो नहीं तुमको खबर हो शायद , लोग कहते हैं तुमने मुझे बर्बाद कर दिया 
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तुझे इन्ही काँटों पे चल के जाना होगा , उनके घर को बस येही एक रहगुज़र जाती है 
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कौन बहते हुए अश्कों पे नज़र रखता है , लोग हँसते हुए चेहरों को दुआ देते हैं ..
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गुज़रे ज़माने का अब ज़िक्र ही क्या , जो भी गुज़र गया अच्छा गुज़र गया …हां हां
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दिल तो क्या चीज़ है , हम रूह में उतरे होते , तुमने चाहा ही नहीं चाहने वालों की तरह …
 
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अजब तरह के लौग बसते हैं तेरे शहर में , अना में मिट जाते हैं मुहब्बत नहीं Karte 
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क्यूँ चुपके से वोह लोग उतर जाते हैं दिल में , जिन ’से किस्मत के सितारे नहीं मिलते …
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उन ’से  पुछो  कभी  चेहरे  पढ़े  हैं  तुम ’ने , जो  किताबों  की  किया  करते  हैं  बातें  अक्सर 
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..मंजिल  को  चाहा है  जब ’से , फासले  और  बड गए  हैं  तब ’से …!
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तूफ़ान  कर  रहा  था  मेरी  अजम  का  तवाफ , और  दुनिया  समझ  रही  थी  कश्ती  मेरी  भंवर  में  है
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तुझ ’से  बिछड़  कर  एक  फायदा  मुझे  भी  हुआ , तनहा  चलने  का  सलीका  तो  आ  गया  मुझे …
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हम ’ने  दूंढ  लिया  है  लोगों  के  दुःख  दर्द  का  इलाज , क्या  बुरा  है  जो  ये  अफवाह  उड़ा  दी  जाए … >>>>>>>>>>>><>>>>>>>>>><>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
कल  मिला  वक़्त  तो  जुल्फें  तेरी  सुलझाउंगा  , आज  उलझा  हूँ  ज़रा  वक़्त  को  सुलझाने  में ..!!
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मेरी  बर्बादी  पर  मुस्कुरा  के  वोह  कहने  लगे , आप ’से  किसने  कहा  था  दिल  लगाने  के  लिए …
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ए  दोस्त  मोहब्बत  के  सदमे  तनहा  ही  उठाने  पड़ते  हैं , न  दोस्त  तसल्ली  देते  हैं  न  जाम  सहारा  देता  है
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अपने  सिवा  बताओ  कभी  कुछ  मिला  भी  है  तुम्हें , हज़ार  बार  ली  हैं  तुमने  मेरे  दिल   की  तलाशियां …
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वो  कहते   हैं  की  अगर  नसीब  होगा  मेरा  तो  हम  उन्हें  ज़रूर  पाएंगे , हम  पूछते  हैं  उनसे  अगर  हम  बदनसीब  हुए  तो .. उनके  बिना  कैसे  जी  पाएंगे ..
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गुरुवार, 20 जनवरी 2011

राहत इन्दोरी !!

अपनी पहचान मिटने को कहा जाता है.
बस्तिया छोड़ के जाने को कहा जाता है
पत्तिया रोज़ गिरा जाती है जहरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है
कोई मौसम हो दुःख सुख में गुजरा कौन करता है |
परिंदों की तरह सबकुछ गवारा कौन करता है |
घरो की राख फिर देखेंगे पहले ये देखना है,
घरों को फूंक देने का इशारा कौन करता |

जिसे दुनिया कहा जाता है कोठे की तवाइफ़ है |
इशारा किसको करती है, नजारा कौन करता है | 

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जिहालातो के अंधेरे मिटा के लौट आया |

मै आज सारी किताबे जलाके लौट आया |

वो अब भी बैठी सिसककर रो  रही होगी |

मै अपना हाथ हवा में हिलाकर लौट आया |


ख़बर मिली है की सोना निकल रहा है वहा

मै जिस जमीं पे ठोकर लगाके आया |
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मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर
आईने मेरे क़द के बराबर नही मिले ……..’

‘मुकाबिल आइना है और तेरी गुलकारियां जैसे…….
सिपाही कर रहा हो ज़ंग की तय्यारियां जैसे……… ‘

‘मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं ….
ये हुकूमत किसी तलवार की मोहताज नही…


लोग होंठों पे सजाये हुए फिरते है मुझे
मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज नही……’

‘जितना देख आये हैं अच्छा है यही काफ़ी है ……
अब कहाँ जायें के दुनिया है यही काफ़ी है..’!!

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अशार !!(४)

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों !!
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सर पे धुप आयी तो दरख्त बन गया मैं
तेरी ज़िन्दगी में अक्सर मैं कोई वजह रहा हूँ
कभी दिल में आरजू सा , कभी मुंह में बददुआ सा
मुझे जिस तरह भी चाहा , मैं उस तरह रहा हूँ !!

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लफ्ज़ एहसास से छाने लगे , ये तो हद है
लफ्ज़ मन भी छुपाने लगे , ये तो हद है

आप दीवार गिराने के लिया आये थे
आप दीवार उठाने लगे , ये तो हद है

खामोशी शोर से सुनते थे की घबराती है
खामोशी शोर मचाने लगे , ये तो हद है !!

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ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से
देखो बादल कहाँ आज बरसे।

फिर हुईं धड़कनें तेज़ दिल की
फिर वो गुज़रे हैं शायद इधर से।!!

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ये इंतजार ग़लत है की शाम हो जाए
जो हो सके तो अभी दौर-ऐ-जाम हो जाए

खुदा-न ख्वास्ता पीने लगे जो वाइज़ भी
हमारे वास्ते पीना हराम हो जाए

मुझ जैसे रिंद को भी तू ने हश्र में या रब
बुला लिया है तो कुछ इंतज़ाम हो जाए


वो सहन-ऐ-बाग़ में आए हैं माय -काशी के लिए
खुदा करे के हर इक फूल जाम हो जाए

मुझे पसंद नहीं इस पे गाम -जान होना
वो रह-गुज़र जो गुज़र-गाह-ऐ-आम हो जाए !!

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कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं !!

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहां
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं


जाने कुआ टूटा है पैमाना दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं  !!

बुधवार, 19 जनवरी 2011

ज़रा सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा !

ज़रा सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा
नजाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा
सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंज़ाम से वाकिफ़
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा
समन्दर के सफ़र में किस्मतें पहलु बदलती हैं
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा!!

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

वो लोग बोहत खुश-किस्मत थे !!

वो लोग बोहत खुश-किस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे

हम जीते जी मसरूफ रहे
कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया
काम इश्क के आड़े आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग कर हमने

दोनों को अधूरा छोड दिया.....!!

नसीब आजमाने के दिन आ रहे हैं !!

नसीब आजमाने के दिन आ रहे हैं
क़रीब उनके आने के दिन आ रहे हैं

जो दिल से कहा है, जो दिल से सुना है
सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं

अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं


टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं

सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं

चलो कृष्णपाल  फिर से कहीं दिल लगाएं
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं.........................!!

एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये !!मंजर भोपाली !

एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये
या तो खुद ही बदल जाइए या ज़माना बदल दीजिये

तर निवाले खुशामद के जो खा रहे हैं वो मत खाइए
आप शाहीन बन जायेंगे आब-ओ-दाना बदल दीजिये

अहल-ए-हिम्मत ने हर दौर मैं कोह* काटे हैं तकदीर के
हर तरफ रास्ते बंद हैं, ये बहाना बदल दीजिये
[कोह=पहाड़]


तय किया है जो तकदीर ने हर जगह सामने आएगा
कितनी ही हिजरतें कीजिए या ठिकाना बदल दीजिये

हमको पाला था जिस पेड़ ने उसके पत्ते ही दुश्मन हुए
कह रही हैं डालियाँ, आशियाना बदल दीजिये  !!!!!!!!!!!!!!१(मंजर भोपाली )

कही सुनी पे बोहत एतबार करने लगे !

कही सुनी पे बोहत एतबार करने लगे
मेरे ही लोग मुझे संगसार* करने लगे
[*संगसार=पत्थर मारना, getting brickbats]

पुराने लोगों के दिल भी हैं खुशबुओं की तरह
ज़रा किसी से मिले, एतबार करने लगे

नए ज़माने से आँखें नहीं मिला पाये
तो लोग गुज़रे ज़माने से प्यार करने लगे


कोई इशारा, दिलासा न कोई वादा मगर
जब आई शाम तेरा इंतज़ार करने लगे

हमारी सादामिजाजी कि दाद दे कि तुझे
बगैर परखे तेरा एतबार करने लगे !!!!!!!!!!!!!!!!वसीम बरेलवी !!
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या

जब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

एक आईना था, सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्या

दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाओ तो क्या

मैं तनहा था, मैं तनहा हूँ
तुम आओ तो क्या, न आओ तो क्या


जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या, गहनाओ तो क्या

एक वहम है ये दुनिया इसमें
कुछ खो'ओ तो क्या और पा'ओ तो क्या

है यूं भी ज़ियाँ और यूं भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या !!

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा !!

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा


कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता कृष्णपाल 

मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा

माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नही,,,,,,,

माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नही,
कैसे कहें की तेरे तलबगार हम नही………..
ख़ुद को जला के ख़ाक कर डाला,मिटा दिया,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नही…….
जिस को सँवारा हमने तमन्नाओं के ख़ून से,
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नही……..
धोखा दिया है ख़ुद को मुहोब्बत के नाम से,
कैसे कहें की तेरे गुनाहगार हम नही……..

ग़रीब क्या इश्क़ करेगा !!

ग़रीब क्या इश्क़ करेगा,क्या इश्क़ का इकरार करेगा,
क्यूं जीना अपना जानबूझकर दुश्वार करेगा…. 

दो पैसे कमा के,प्यार से दाल रोटी खाता है,
इश्क़ के चक्कर मैं क्यूं ख़ुद को बेकार करेगा…..

मेहनत करके थक्क हार के,अच्छी नींद वो सोता है,
क्यूं रातों मैं तारे गीन गीनकर वो व्यापार करेगा…..

इश्क़ की गलियों मैं,दिल उसका अगर टूट जाए तो,
ऐसे बेबस प्रेमी का सहयोग  क्या संसार करेगा 

पर यह  क़ुदरत का खेल भी देखो निराला,
इश्क़ उसे भी हो जाए तो,फिर क्या वो लाचार करेगा……!!!!!!!!!!

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये !!

                                 कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
                                 तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आखिर
मोहबात की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये

समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
 हवायेँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये

मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा 
                                   परिंदा आसमाँ छूने में जब नाक़ाम हो जाये
                                उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
                                 न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये  !!!!!

          

एक ग़लतफ़हमी थी !!

एक  ग़लतफ़हमी  थी  जो  आज  मंज़ूर  हो  गई ,
तू  मेरी  नज़रों  से  और  भी  ज्यादा  दूर  हो  गई .

ये  तेरी  आँखें  जिसमे  कभी  शराब  से  ज्यादा  नशा  था
आज  वक़्त  की  मार  से  बेनूर  हो  गई .

तेरी  एक   हंसी  पे  कितने  ही  हो  जाते  थे  कुर्बान ,
किसके  ग़म  में  तू  आज  रोने  को  मजबूर  हो  गई .

डोली  उठती  तो  है  पर  एक  मय्यत  साथ  लेकर .
इश्क  की  बेबसी  आज  दस्तूर  हो  गई !!!!.

रविवार, 16 जनवरी 2011

शायरी !!!!!!!

 (१)दुनिया  में  और  भी  वजह  होती  है  दिल  के  टूट  जाने  की
लोग  युही  मोहब्बत  को  बदनाम  किया  करते  है  !!

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(२)आती  है  याद  उसकी  अक्सर , जिसको  कभी  मेरी  याद  नहीं  आती
मुझे  भी  कोई  याद  करता  होगा ,जिसकी  मुझे  याद  नहीं  आती  !!

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(३) वो  एक  ख़त , जो  उस  ने  कभी  लिखा  ही  नहीं
में  रोज्ज़  बैठ  कर  , उस  का  जवाब  लिखता  हूँ ..

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(४)दुःख ये  है  तू  सच  सुनने  का  आदि  नहीं  वरना
ये  उम्र  तुझे  ख्वाब  दिखने  की  नहीं  है !!

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मेरे  हाथो   की  लकीरों  मैं  नहीं  तू  शायद 

अपनी  तकदीर  बना  मेरा  मुक़द्दर  न  बदल !!
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कभी  टूटा  नहीं  मेरे  दिल  से  तेरी  याद   का   तिलिस्म  कृष्णपाल
गुफ्तगू  जिस  से  भी  हो  ख्याल   तुम्हारा  ही  आता  है !!

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मैं  तो  खुद  अपने  लिए   अजनबी  सा  बन  गया  हूँ .
तू  बता  मुझ  से  जुदा  हो  कर  तुझे  कैसा   लगा !!

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कल तेरा  जिक्र  आ  गया  घर  में

और  घर  देर  तक  महकता  रहा ......!!
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वहां  से  एक  पानी  की  बूँद  न  निकल  सकी ~कृष्णपाल `,
तमाम  उम्र  जिन  आँखों  को  हम  झील  लिखते  रहे .

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सो   जाते   हैं , फूटपाथ  पर  अखबार  बिछा _कर ,
मजदूर  कभी  नींद  की  गोली  नहीं  खाते !!!!! 

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मुझ  से  कहती  है  तेरे  साथ  रहूँगी  सदा कृष्णपाल 
बहोत  प्यार   करती  है  मुझसे  उदासी  मेरी !!!!!

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जिसको  भी  देखा  रोता  हुआ  पाया कृष्णपाल 
मोहब्बत  तो  मुझे  किसी  फकीर  की  बद्दुआ  लगती  है !!!हां हां 

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कोई  तो  मोल  लगाए  मेरी  हस्ती  का  कृष्णपाल 
किसी  की  आँख  के  आंसू  खरीदने  हैं  मुझे !!!
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वो  बेवफा  ही  सही  आओ  उस  का  ज़िक्र  करैं 
अभी  तो  उम्र  पड़ी  है  उस  को  भुलाने  के  लिए !!!

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मोहब्बत  के  अंदाज़  जुदा  जुदा  है ~~कृष्णपाल ~~
किसी  ने  टूट  कर  चाहा  तो  कोई  चाह  कर  टूट  गया !!

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जान  दे  देंगे  ये  हमारे  बस  मैं  है ,
हम  नहीं  करते  बात  सितारे  तोड़  लाने  की 
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मैं  बद -दुआ  तो  नहीं  देती  उसको   मगर दुआ  येही  है  ,
 उसे  मुझ  सा  न  मिले  कोई 

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हमने  तुम्हारे  बाद  न  रखी किसी  से  आस ,
 एक  तजुर्बा  बहुत  था  बड़े  काम  आया ..

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मुलाकाते  जरूरी  है  अगर  रिश्ते  बचाने  है ,
लगा  कर  भूल  जाने  से  तो  पौधे  भी  सुख  जाते  है !!
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तेज़  रफ़्तार  ज़िन्दगी  का  ये  आलम  है  के ,
 
सुबह  के  गम  शाम  को  पुराने  हो  जाते  हैं !!
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ज़िन्दगी   में  बहुत  कम  मिली  हैं कृष्णपाल ,
हर  वो  चीज़  जिसे  शिद्दत   से  चाहा  मैंने !!
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इन  हसरतो  से  कह  दो  कहीं  और  जा  बसें
इतनी  जगह  कहाँ  है  दिल -ऐ -दागदार  में !!!
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ये  बताता  नहीं  कोई  मुझको  
दिल  जो  आ  जाए  तो  क्या  करते  हैं !!!
 
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खैरात  में  मिली  ख़ुशी  मुझे  अच्छी  नहीं  लगती  
मैं  अपने  दुखों  में  रहता  हूँ  नवाबों  की  तरह ...
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गुरुवार, 13 जनवरी 2011

सोचना ही फ़िज़ूल है शायद !!

सोचना ही फ़िज़ूल है शायद
जिंदगी एक भूल है शायद

हर नज़ारा दिखाई दे धुंधला
मेरी आँखों पे धुल है शायद

इक अजब सा सुकून है दिल में
आपका ग़म क़ुबूल है शायद


दोस्ती प्यार दुश्मनी नफरत
यूं लगे सब फ़िज़ूल है शायद

किस कदर चुभ रहा हूँ मैं
मेरे दामन में फूल है शायद

रोज़ सवेरे दिन का निकलना,,,,

रोज़ सवेरे दिन का निकलना, शाम में ढलना जारी है
जाने कब से रूहों का ये ज़िस्म बदलना जारी है

तपती रेत पे दौड़ रहा है दरिया की उम्मीद लिए
सदियों से इन्सान का अपने आपको छलना जारी है

जाने कितनी बार ये टूटा जाने कितनी बार लुटा
फिर भी सीने में इस पागल दिल का मचलना जारी है


रसों से जिस बात का होना बिल्कुल तय सा लगता था
एक न एक बहाने से उस बात का टलना जारी है

तरस रहे हैं एक सहर को जाने कितनी सदियों से
वैसे तो हर रोज़ यहाँ सूरज का निकलना जारी है

राज़ की बातें लिखी और खत खुला रहने दिया !!

राज़ की बातें लिखी और खत खुला रहने दिया
जाने क्यों रुसवाईयों का सिलसिला रहने दिया

उम्र भर मेरे साथ रहकर वो ना समझा दिल की बात
दो दिलों के दर्मियां इक फ़ासला रहने दिया

अपनी फ़ितरत वो बदल पाया न इसके बावजूद
खत्म की रंजिश मगर गिला रहने दिया


मैं समझता था खुशी देगी मुझे "कृष्णपाल " फ़रेब
इस लिये मैं ने ग़मों से राब्ता रहने दिया  !!!

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा !!

मेरे जैसे बन जाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा
दीवारों से सर टकराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

हर बात गवारा कर लोगे मन्नत भी उतारा कर लोगे
ताबीज़ें भी बँधवाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

तंहाई के झूले खूलेंगे हर बात पुरानी भुलेंगे
आईने से तुम घबराओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा


जब सूरज भी खो जायेगा और चाँद कहीं सो जायेगा
तुम भी घर देर से आओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा

बेचैनी बड़ जायेगी और याद किसी की आयेगी
तुम मेरी ग़ज़लें गाओगे जब इश्क़ तुम्हें हो जायेगा !!

मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें !!

मुझ से मिलती हैं तो मिलती हैं चुरा कर आँखे
फिर वो किसके लिए रखती है सज़ा कर आँखें

मैं उन्हें देखता रहता हूँ जहाँ तक देखूं
एक वो हैं, के जो देखे ना, उठा कर आँखें

उस जगह आज भी बैठा हूँ अकेला यारो
जिस जगह छोड़ गये थे वो मिला कर आँखें


मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें !!

रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया !!

हम को तो गर्दिश-ए-हालात पे रोना आया
रोने वाले तुझे किस बात पे रोना आया

कैसे मर-मर के गुज़ारी है तुम्हें क्या मालूम
रात भर तारों भरी रात पे रोना आया

कितने बेताब थे रिम झिम में पीयेंगें लेकिन
आई बरसात तो बरसात पे रोना आया


कौन रोता है किसी और के गम की खातिर
सब को अपनी ही किसी बात पे रोना आया

‘कृष्णपाल ’ ये दिन तो क़यामत की तरह गुज़रा है
जाने क्या बात थी हर बात पे रोना आया!!! कृष्णपाल सिंह चौहान 

मौत की वीरानियों में ज़िन्दगी बन कर रहा !!

मौत की वीरानियों में ज़िन्दगी बन कर रहा
वो खुदाओं के शहर में आदमी बन कर रहा

ज़िन्दगी से दोस्ती का ये सिला उसको मिला
ज़िन्दगी भर दोस्तों में अजनबी बन कर रहा

उसकी दुनिया का अंधेरा सोच कर तो देखिए
वो जो अंधों की गली में रौशनी बन कर रहा


सनसनी के सौदेबाज़ों से लड़ा जो उम्र-भर
हश्र ये खुद एक दिन वो सनसनी बन कर रहा

एक अंधी दौड़ की अगुआई को बेचैन सब
जब तलक बीनाई थी मैं आखिरी बन कर रहा

मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने !!

मुझसे मिलने के वो करता था बहाने कितने
अब गुज़ारेगा मेरे साथ ज़माने कितने

मैं गिरा था तो बहुत लोग रुके थे लेकिन
सोचता हूं मुझे आये थे उठाने कितने

जिस तरह मैने तुझे अपना बना रक्खा है
सोचते होंगें यही बात ना जाने कितने


तुम नया ज़ख्म लगाओ! तुम्हे इस से क्या है
भरने वाले हैं अभी ज़ख्म पुराने कितने !!!

मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है !!

अपनी तस्वीर को आँखों से लगाता क्या है
एक नज़र मेरी तरफ देख तेरा जाता क्या है

मेरी रुसवाइयों में तू भी है बराबर का शरीक

मेरे किस्से मेरे यारों को सुनाता क्या है

पास रहकर भी न पहचान सका तू मुझको

दूर से देख के अब हाथ हिलाता क्या है


उम्र भर अपने गिरेबान से उलझने वाले
तू मुझे मेरे ही साये से डराता क्या है

मैं तो तेरा कुछ भी नहीं हूँ मगर इतना तो बता

देख कर मुझको तेरे ज़हन में आता क्या है

तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री !!

तेरी महफ़िल से उठकर इश्क़ के मारों पे क्या गुज़री
मुख़ालिफ़ इक जहाँ था जाने बेचारों पे क्या गुज़री

सहर को रुख़्सत-ए-बीमार-ए-फ़ुर्क़त देखने वालो
किसी ने ये भी देखा रात भर तारों पे क्या गुज़री

सुना है ज़िन्दगी वीरानियों ने लूट् ली मिलकर्
न जाने ज़िन्दगी के नाज़बरदारों पे क्या गुज़री


हँसी आई तो है बेकैफ़ सी लेकिन ख़ुदा जाने
मुझे मसरूर पाकर मेरे ग़मख़्वारों पे क्या गुज़री

असीर-ए-ग़म तो जाँ देकर रिहाई पा गया लेकिन
किसी को क्या ख़बर ज़िन्दाँ की दिवारों पे क्या गुज़री !!

बोलता है तो पता लगता है !!!

बोलता है तो पता लगता है
ज़ख्म उसका भी नया लगता है

रास आ जाती है तन्हाई भी
एक दो रोज़ बुरा लगता है

कितने ज़ालिम हैं ये दुनिया वाले
घर से निकलो तो पता लगता है


आज भी वो नहीं आने वाला
आज का दिन भी गया लगता है

बोझ सीने पे बहुत है लेकिन
मुस्कुरा देने में क्या लगता है

दो कदम है अदालत, लेकिन
सोच लो! वक़्त बड़ा लगता है  !!!!

बुधवार, 12 जनवरी 2011

हमें कोई गम न था, गम-ए-आशिकी से पहले
न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले

ये है मेरी बदनसीबी, तेरा क्या कुसूर इसमें

तेरे गम ने मार डाला, मुझे जिंदगी से पहले

मेरा प्यार जल रहा है, ए चाँद आज छुप जा

कभी प्यार कर हमें भी, तेरी चांदनी से पहले


ये अजीब इम्तेहान है, कि तुम्ही को भूलना है
मिले कब थे इस तरह हम, तुम्हे बेदिली से पहले

न थी दुश्मनी किसी से, तेरी दोस्ती से पहले

अपनों ने लगाई चोट तो थोड़ा परेशान से रहे.....

हम उनकी ज़िन्दगी में सदा अंजान से रहे,
और वो हमारे दिल में कितनी शान से रहे.....

ज़ख्म गैरों के तो बेअसर थे हमारी हस्ती पर,

अपनों ने लगाई चोट तो थोड़ा परेशान से रहे.....

चालाकियां ज़माने की देखा किये सहा किये,

उम्र भर लेकिन वही सादा-दिल इंसान से रहे.....


गरजमंद थे हम किस मुंह से शिकायत करते,
उलटे खफा हमेशा अपने दिल ऐ नादान से रहे..

चंद अशार !! (४)

 (१)वो भी शायद रो पड़े वीरान कागज़ देख कर
मैं ने उन को आख़िरी ख़त में लिखा कुछ भी नहीं  !!



 (२) मरेंगें और हमारे सिवा भी तुम पे बहुत
ये जुर्म है तो फिर इस जुर्म की सज़ा रखना !!

 (३) मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिल_सिला निकले !!

(४)बुझते हैं तो बुझ जाए कोई गम नहीं करते
हम अपने चारागो की लौ को कम नहीं करते!!

 (५) सर -ऐ -महफ़िल फ़क़त नज़रें मिलाईं थी तुमसे घबराए किसलिए ? हमने तो कहा कुछ भी नहीं यारो मैं तबाह हुआ अपनी मर्ज़ी से उन्हें तुम कुछ न कहो उनकी खता कुछ भी नहीं !!!!! 


 (६)समझते थे, मगर फिर भी न रखी दूरियां हमने
चिरागों को जलाने में जला ली उंगलियां हमने !! 










तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है !!!!!!!!!!

तेरा चेहरा कितना सुहाना लगता है
तेरे आगे चाँद पुराना लगता है

तिरछे तिरछे तीर नज़र के लगते हैं
सीधा सीधा दिल पे निशाना लगता है

आग का क्या है, पल दो पल में लगती है
बुझते बुझते एक ज़माना लगता है


सच तो ये है फूल का दिल भी छलनी है
हंसता चेहरा एक बहाना लगता है

दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले !!!!!!!

दाग़ दुनिया ने दिये, ज़ख्म ज़माने से मिले
हम को ये तोहफ़े तुम्हें दोस्त बनाने से मिले

हम तरसते ही तरसते ही तरसते ही रहे
वो फ़लाने से फ़लाने से फ़लाने से मिले

खुद से मिल जाते तो चाहत क भ्रम रह जाता
क्या मिले आप जो लोगों के मिलाने से मिले


कैसे माने के उन्हें भूल गया तु ऐ कृष्णपाल
उन के खत आज हमें तेरे सरहाने से मिले !!!

चंद अशार (३) ...........

 (१) अंधेरा मांगने आया था रौशनी की भीख
हम अपना घर ना जलाते तो क्या करते 

 (२)ये इनायतें गज़ब की, ये बला की मेहरबानी
मेरी खैरियत भी पूछी, किसी और की ज़बानी


(४) मेरी बेज़ुबान आंखों से गिरे हैं चन्द कतरे
वो समझ सके तो आंसू, न समझ सके तो पानी

(५)रंज की जब गुफ्तगू होने लगी
आप से तुम, तुम से तू होने लगी 


 (५)गुल से लिपटी हुई तितली को गिराकर देखो
आंधियों तुमने दरख्तों को गिराया होगा !!








मंगलवार, 11 जनवरी 2011

अम्न का जो पैग़ाम सुनाने वाले हैं !!

अम्न का जो पैग़ाम सुनाने वाले हैं
गलियों गलियों आग लगाने वाले हैं

तुम ले जाओ नेज़ा खंजर और तलवार
हम मकतल में सर ले जाने वाले हैं

ज़ुल्म के काले बादल से डरना कैसा
ये मौसम तो आने जाने वाले हैं


बीमारों का अब तो खुदा ही हाफिज़ है
सारे मसीहा ज़हर पिलाने वाले हैं

जान बचाने वाले तो सब हैं लेकिन
अब कितने इमान बचाने वाले हैं

हम को उन वालियों की निसबत हासिल है
दश्त को जो गुल्ज़ार बनाने वाले हैं


भूखा रह के साइल को खैरात जो दे
हम भी माजिद उसी घराने वाले हैं !!!

तुम्हें है शौक अगर बिजलियां गिराने का !!!!!!!!

तुम्हें है शौक अगर बिजलियां गिराने का
हमारा काम भी है आशियां बनाने का

भला वो कैसे समंदर के पार उतरेगा
नफस नफस जिन्हें खदशा है डूब जाने का

सुना है आप हैं माहिर हवा चलाने में
मगर हमें भी हुनर है दिये जलाने का

ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद !!

ला पिला दे साकिया पैमाना पैमाने के बाद
होश की बातें करूंगा, होश में आने के बाद

दिल मेरा लेने की खातिर, मिन्नतें क्या क्या न कीं
कैसे नज़रें फेर लीं, मतलब निकल जाने के बाद

वक्त सारी ज़िन्दगी में, दो ही गुज़रे हैं कठिन
इक तेरे आने से पहले, इक तेरे जाने के बाद

सुर्ख रूह होता है इंसां, ठोकरें खाने के बाद
रंग लाती है हिना, पत्थर पे पिस जाने के बाद  !!

इस शहर के लोगों से वफ़ा माँग रहा हूँ !!!!!!!!!!

इस शहर के लोगों से वफ़ा माँग रहा हूँ
और सोच मे डूबा हूँ के क्या माँग रहा हूँ

ये सब ने सज़ा रखा है जो अपनी जबीन पर

मैं दिल पे भी इक ऐसा निशाँ माँग रा हूँ

इस सूखे हुए खेत का जो रंग बदल दे

उस रहम की बारिश की दुआ माँग रा हूँ

पत्थर का तलबगार हूँ शीशे क नगर मे
क्या माँग रहा हूँ मैं कहाँ माँग रहा हूँ

तू बाँध के जुल्फों से मुझे दिल मे बिठा ले

मुजरिम हूँ तेरा तुझ से सज़ा माँग रहा हूँ

पहलू में तेरे सिर हो मेरा, मौत जब आए

बस इतना करम वक़्त-ए-नज़ा माँग रहा हूँ

मैं कौन हूँ, क्या हूँ, मैं यहाँ किस लिए आया
मैं खुद से खुद अपना ही पता माँग रहा हूँ

दो लफ्ज़ मेरे नाम भी लिख दे कभी "
कृष्णपाल "
मैं तुझ से वफाओं का सिला माँग रहा हूँ
  !!!!!!!!!!

किस्सा-ए-दर्द ज़माने को सुनाने निकले !!

किस्सा-ए-दर्द ज़माने को सुनाने निकले
हम भी असीम कि तरह कितने दीवाने निकले

उस के दर पर इसी उम्मीद पे बैठा हूँ फ़क़त

काश खैरात ही करने के बहाने निकले

मेरे दुःख दर्द को सुनने का नहीं वक़्त इन्हें

कितने मसरूफ सभी यार पुराने निकले


सारे कन्धों पे है ज़ंजीर-ए-गुलामी का वज़न
कौन गैरत का जनाज़े को उठाने निकले

ख्वाब में गम है खुली आँख से ये कौम मेरी

है यही वक़्त कोई इसको जगाने निकले

पर्दा-ए-गैब में बैठा है जो हादी कृष्णपाल 

उसको आवाज़ दो अब दीं बचाने निकले

अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था !!!

अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था

मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था

वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था


मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था  !!!!

जब कभी चाहे अंधेरों में उजाले उसने !!!

जब कभी चाहे अंधेरों में उजाले उसने
कर दिया घर मेरा शोलों के हवाले उसने

उस पे खुल जाती मेरे शौक की शिद्दत सारी
देखे होते जो मेरे पांव के छाले उसने

जिसका हर ऐब ज़माने से छुपाया मैने
मेरे किस्से सर-ए-बाज़ार उछाले उसने


जब उसे मेरी मोहब्बत पर भरोसा ही ना था
क्यों दिये मेरी वफाओं के हवाले उसने

एक मेरा हाथ ही ना थामा उसने कृष्णपाल
वरना गिरते हुए तो कितने ही संभाले उसने  !!

चंद अशार (२)

 (१) खुद को चुनते हुए दिन सारा गुज़र जाता है कृष्णपाल
फ़िर हवा शाम की चलती है तो बिखर जाते हैं  !! 


(२)  खुद को चुनते हुए दिन सारा गुज़र जाता है कृष्ण
फ़िर हवा शाम की चलती है तो बिखर जाते हैं
  !! 


 (३) सूखी शाखों पर तो हमने लहू छिड़का था कृष्ण
कलियां अब भी न खिलती तो कयामत होती !! 


 (4) मोहब्बत की परस्तिश के लिये एक रात ही काफी है  कृष्ण
सुबह तक जो ज़िन्दा रह जाये वो परवाना नहीं होता !! 

 (५) उसका मिलना ही मुक्कद्दर में न था कृष्ण
वरना क्या कुछ नहीं खोया हमने उसे पाने के लिये !! 


 (६)कुछ इसलिये भी तुम से मोहब्बत है  कृष्ण
मेरा तो कोई नहीं है तुम्हारा तो कोई हो !! 



 (७)डूबने वाला था, और साहिल पे चेहरों का हुजूम
पल की मोहलत थी, मैं किसको आंख भर के देखता !! 


(८) अजब लुत्फ आ रहा था दीदार-ए-दिल्लगी का  कृष्ण
के नज़रें भी मुझ पर थीं और परदा भी मुझ से था !! 



 (९)मेरे जज़्बात से वाकिफ है मेरा कलाम कृष्ण
मैं प्यार लिखूं तो नाम तेरा लिखा जाता है  !! 



 (10)बाद मरने के भी उसने छोड़ा न दिल जलाना कृष्ण
रोज़ फ़ेंक जाती है फूल साथ वाली कब्र पर  !!

 (११)जो भी बिछड़े हैं कब मिले हैं कृष्ण
फ़िर भी तू इंतज़ार कर शायद  !!! 

 (१२)वो जिसके पास रहता था दोस्तों का हुजूम
 सुना है कृष्णपाल  कल रात एहसास-ए-तनहाई से मर गया !!

 (१३)वो अपने फायदे की खातिर फिर आ मिले थे हम से कृष्ण
 हम नादां समझे के हमारी दुआओं में असर है  !!

 (14) मुझे तुम रूह में बसा लो तो अच्छा है कृष्ण 
दिल-ओ-जान के रिश्ते अक्सर टूट जाया करते हैं !!

















अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था !!!

अजीब शख्स था कैसा मिजाज़ रखता था
साथ रह कर भी इख्तिलाफ रखता था

मैं क्यों न दाद दूँ उसके फन की
मेरे हर सवाल का पहले से जवाब रखता था

वो तो रौशनियों का बसी था मगर
मेरी अँधेरी नगरी का बड़ा ख्याल रखता था

मोहब्बत तो थी उसे किसी और से शायद
हमसे तो यूँ ही हसी मज़ाक रखता था

मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं ~~

मेरी ख़्वाहिश है कि फिर से मैं फ़रिश्ता हो जाऊं
माँ से इस तरह लिपट जाऊं कि बच्चा हो जाऊं

कम-से कम बच्चों के होठों की हंसी की ख़ातिर
ऎसी मिट्टी में मिलाना कि खिलौना हो जाऊं

सोचता हूं तो छलक उठती हैं मेरी आँखें
तेरे बारे में न सॊचूं तो अकेला हो जाऊं

चारागर तेरी महारथ पे यक़ीं है लेकिन
क्या ज़रूरी है कि हर बार मैं अच्छा हो जाऊं

बेसबब इश्क़ में मरना मुझे मंज़ूर नहीं
शमा तो चाह रही है कि पतंगा हो जाऊं

शायरी कुछ भी हो रुसवा नहीं होने देती
मैं सियासत में चला जाऊं तो नंगा हो जाऊं

खाली खाली न यूँ दिल का मकां रह जाये ~~~~~~~~

खाली खाली न यूँ दिल का मकां रह जाये
तुम गम-ए-यार से कह दो, कि यहां रह जाये

रूह भटकेगी तो बस तेरे लिये भटकेगी
जिस्म का क्या भरोसा ये कहां रह जाये

एक मुद्दत से मेरे दिल में वो यूँ रहता है
जैसे कमरे में चरागों का धुआं रह जाये


इस लिये ज़ख्मों को मरहम से नहीं मिलवाया
कुछ ना कुछ आपकी कुरबत का निशां रह जाये

सीख जायेगा @@@

हवा के रुख पे रहने दो, जलना सीख जायेगा
कि बच्चा लड़खड़ायेगा तो चलना सीख जायेगा

वो पहरों बैठ कर तोते से बातें करता है
चलो अच्छा है, अब नज़रें बदलना सीख जायेगा

इसी उम्मीद पर बदन को हमने कर लिया छलनी
कि पत्थर खाते खाते पेड़ फलना सीख जायेगा


ये दिल बच्चे की सूरत है, इसे सीने में रहने दो
बुरा होगा जो ये घर से निकलना सीख जायेगा

तुम अपना दिल मेरे सीने में कुछ दिन के लिये रख दो
यहां रह कर ये पत्थर भी पिघलना सीख जायेगा !!!

बुलंदी देर तक किस शक्स के हिस्से मे रहती है, !!!

बुलंदी देर तक किस शक्स के हिस्से मे रहती है,
बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी ख़तरे मे रहती है

बहुत जी चाहता है क़ैद ए जान से हम निकल जायें,

तुम्हारी याद भी लेकिन इसे मलबे मे रहती है

यह ऐसा क़र्ज़ है जो मैं अदा कर ही नही सकता,

मैं जब तक घर ना लौटूं मेरी माँ सजदे मे रहती है


अमीरी रेशम-ओ-कमख्वाब मे नंगी नज़र आई
ग़रीबी शान से इक टाट के पर्दे मे रहती है

मैं इंसान हूँ बहक जाना मेरी फ़ितरत मे शामिल है,

हवा भी उसको छूकर देर तक नशे मे रहती है

मोहब्बत मे परखने जाँचने से फ़ायदा क्या है,

कमी थोड़ी बहुत हर एक के शज्जर मे रहती है


ये अपने आप को तक्सीम कर लेता है सूबों मे ,
खराबी बस यही हर मुल्क के नक्शे मे रहती है   !!!!  

चंद अशार !!!

 (१) ना तार्रूफ ना ताल्लुक है, मगर दिल अक्सर
नाम सुनता है तुम्हारा उछल पड़ता है


 (२) रोज़ तारों की नुमाईश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
उनकी याद आई है, सांसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है 


 (३)दवा की तरह खाते जाईयें गाली बुजुर्गों की,
जो अच्छे फल है उनका ज़ायका अच्छा नहीं होता


 (४)हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है
दिखाते हैं पड़ौसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है?

(5)तुझ से बिछड़ा तो पसन्द आ गई बेतरतीबी
इस से पहले मेरा कमरा भी गज़ल जैसा था

(६)मैं चाहता हूँ फिर से वो दिन पलट आयें
कि माँ के चुल्लू को मेरा गिलास होना पड़े

(७)शिकायतें तो मुझे मौसम-ए-बहार से है
खिज़ान तो फूलने फलने के बाद आता है

(८)वो मुझको छोड़ न देता, तो और क्या करता
मैं वो किताब हूँ, जिसके कईं वर्क ना रहे

(९) कृष्णपाल माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,
जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती

(१०)तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फलक
मुझको मेरी मां की मैली ओढ़नी अच्छी लगी

(11)उलझता रहता हूँ यूँ तुम्हारी यादों से
के जैसे बच्चे के हाथों में ऊन आ जाये

(12)आंखें हैं कि उन्हें घर से निकलने नहीं देती
आंसू हैं कि सामान-ए-सफर बांधे हुए हैं

सोमवार, 10 जनवरी 2011

थोड़ी है !!!!!!!!!!!!!!

अगर ख़िलाफ़ हैं होने दो जान थोड़ी है
ये सब धुआँ है कोई आसमान थोड़ी है

लगेगी आग तो आएँगे घर कई ज़द में
यहाँ पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है

मैं जानता हूँ के दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है


हमारे मुँह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुँह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है
सदाक़त=Authenticity, Truth

जो आज साहिबे मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं ज़ाती मकान थोड़ी है
मसनद=Throne


सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में
किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है    !!!!!!!!!!!!!!!! राहत इन्दोरी !!

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा

ले चला जान मेरी रूठ के जाना तेरा
ऐसे आने से तो बेहतर था ना आना तेरा

अपने दिल को भी बताऊँ ना ठिकाना तेरा
सब ने जाना जो पता एक ने जाना तेरा

तू जो ऐ ज़ुल्फ़ परेशान रहा करती है
किस के उजड़े हुए दिल में है ठिकाना तेरा


ये समझ कर तुझे ऐ मौत लगा रखा है
काम आता है बुरे वक़्त में आना तेरा

अपनी आँखों में भी कौँध गई बिजली सी
हम ना समझे कि ये आना है कि जाना तेरा

दाग को यूँ वो मिटाते हैं ये फ़र्माते हैं
तू बदल डाल हुआ नाम पुराना तेरा

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता !!!!!!!!

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये
नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा
किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता


वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ
यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में
तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में !!

बस इक झिझक है यही हाल-ए-दिल सुनाने में
कि तेरा ज़िक्र भी आयेगा इस फ़साने में 


बरस पड़ी थी जो रुख़ से नक़ाब उठाने में
वो चाँदनी है अभी तक मेरे ग़रीब-ख़ाने में 


इसी में इश्क़ की क़िस्मत बदल भी सकती थी
जो वक़्त बीत गया मुझ को आज़माने में

ये कह के टूट पड़ा शाख़-ए-गुल से आख़िरी फूल
अब और देर है कितनी बहार आने में !!!!!!!!!!!!!

नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता !!

मैं ढूँढता हूँ जिसे वो जहाँ नहीं मिलता
नई ज़मीं नया आसमाँ नहीं मिलता

नई ज़मीं नया आसमाँ भी मिल जाये

नये बशर का कहीं कुछ निशाँ नहीं मिलता

वो तेग़ मिल गई जिस से हुआ है क़त्ल मेरा

किसी के हाथ का उस पर निशाँ नहीं मिलता


वो मेरा गाँव है वो मेरे गाँव के चूल्हे
कि जिन में शोले तो शोले धुआँ नहीं मिलता

जो इक ख़ुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्यूँ

यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता

खड़ा हूँ कब से मैं चेहरों के एक जंगल में

तुम्हारे चेहरे का कुछ भी यहाँ नहीं मिलता

दिल ऐ शायरी !!

इंसान की ख्वाहिशों की कोई इंतहा नही
दो गज़ ज़मीन भी चाहिये दो गज़ कफन के बाद !!

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चाँद  की जुदाई में आसमान भी तड़प गया
उसकी एक झलक पाने को हर सितारा तरस गया
बादल के दर्द का क्या कहूँ
वो भी हस्ते - हस्ते हां हां हां हां हां बरस गया !! 
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अगर वो आसमानों में बुलाये तो चले जाना
मोहब्बत करने वाले फासले देखा नहीँ करते
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अफवाह किसी ने फैलाई थी तेरे शहर में होने की,
मैं हर एक दर पर मुकद्दर आज़माता रहा..
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कईं दर्दों को अब दिल में जगह मिल जायेगी
वो गया कुछ जगह खाली इतनी छोड़ कर !!!!
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कर रहा था गम-ए-जहां का हिसाब
आज तुम याद बेहिसाब आये!!
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मैं पट्रीयों की तरहा ज़मी पर पड़ा रहा
सीने से गम गुज़रते रहे रेल की तरह !!!!
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अजीब है कि मुझे रास्ता नहीं देता !!!!!!!!!!

अजीब है कि मुझे रास्ता नहीं देता
मैं उसको राह से जब तक हटा नहीं देता

मुझे भी चाहिये कुछ वक्त खुद से मिलने को
मैं हर किसी को तो अपना पता नहीं देता

ये अपनी मर्ज़ी से अपनी जगह बनाते हैं
समंदरों को कोई रास्ता नहीं देता


ज़रूर है किसी गर्दन पे रौशनी का खून
कोई चिराग तो खुद को बुझा नहीं देता

मेरी निगाह की गुस्ताखियाँ समझता है
वो जाने क्यों मुझे फ़िर भी सज़ा नहीं देता

ये छोटे छोटे दिये साज़िशों में रहते हैं
किसी का घर, कोई सूरज जला नहीं देता  !!!!!!!!!!!!!!

रविवार, 9 जनवरी 2011

पहली दफा हमेशा इनकार हुआ करती है

बिसात-ए-इश्क में हर दाव  दिल से चला जाता है
ज़रा भी चुके कहीं, तो हार हुआ करती है

इजहार-ए-इश्क का सबक आप हम से लीजिए

पहली दफा हमेशा इनकार हुआ करती है

न हो इनकार तो होता इकरार भी नहीं

इस तरह की कशमकश कई बार हुआ करती है


अगर न बने बात तो बढ़कर हाथ ही थाम लो
जंग-ए-इश्क आर या पार हुआ करती है

गर न माने दिल ज़लालत से गिरने को

तो लिख कर बयाँ कर दो, फिर कलम ही आखिरी हथियार हुआ करती है :)

आज दुल्हन के लाल जोड़े में,,,,,,,,,,,,,,,,,,

आज दुल्हन के लाल जोड़े में,
उसे उसकी सहेलियों ने सजाया होगा…

मेरी जान के गोरे हाथों पेर
सखियों ने मेहन्दी को लगाया होगा…

बहुत गहरा चढेगा मेहन्दी का रंग,
उस मेहन्दी में उसने मेरा नाम छुपाया होगा…


रह रह कर रो पड़ेगी
जब जब उसको ख़याल मेरा आया होगा…

खुद को देखगी जब आईने में,
तो अक्स उसको मेरा भी नज़र आया होगा…

लग रही होगी बला सी सुन्दर वो,
आज देख कर उसको चाँद भी शरमाया होगा


आज मेरी जान ने
अपने माँ बाप की इज़्ज़त को बचाया होगा

उसने बेटी होने का
दोस्तों आज हर फ़र्ज़ निभाया होगा

मजबूर होगी वो सबसे ज़्यादा,
सोचता हूँ किस तरह उसने खुद को समझाया होगा


अपने हाथों से उसने
हमारे प्रेम के खतों को जलाया होगा

खुद को मजबूत बना कर उसने
अपने दिल से मेरी यादों को मिटाया होगा

टूट जाएगी जान मेरी,
जब उसकी माँ ने तस्वीर को टेबल से हटाया होगा


हो जाएँगे लाल मेहन्दी वाले हाथ,
जब उन काँच के टुकड़ों को उसने उठाया होगा

भूखी होगी वो जानता हूँ में,
कुछ ना उस पगली ने मेरे बगैर खाया होगा

कैसे संभाला होगा खुदको
जब उसे फेरों के लिए बुलाया होगा


कांपता होगा जिस्म उसका,
हौले से पंडित ने हाथ उसका किसी और को पकड़ाया होगा

में तो मजबूर हूँ पता है उसे,
आज खुद को भी बेबस सा उसने पाया होगा

रो रो के बुरा हाल हो जाएगा उसका,
जब वक़्त उसकी विदाई का आया होगा


बड़े प्यार से मेरी जान को
मया बाप ने डॉली में बिताया होगा

रो पड़ेगी आत्मा भी
दिल भी चीखा ओर चीलाया होगा

आज अपने माँ बाप के लिए
उसने गला अपनी खुशियों का दबाया होगा


रह ना पाएगी जुदा होकेर मुझसे
डर है की ज़हर चुपके से उसने खाया होगा

डोली में बैठी इक ज़िंदा लाश को
चार कंधो पेर कहरों ने उठाया होगा,!!!!!!!!!!!!

दिल की चौखट पे एक दीप जला रखा है !!!

दिल की चौखट पे एक दीप जला रखा है
तेरे लौट आने का इमकान सजा रखा है

साँस तक भी नहीं लेते हैं तुझे सोचते वक़्त
हम ने इस काम को भी कल पे उठा रखा है
रूठ जाते हो तो कुछ और हसीन लगते हो
हम ने यह सोच के ही तुम को खफा रखा है

तुम जिसे रोता हुआ छोड़ गये थे एक दिन
हम ने उस शाम को सीने से लगा रखा है
चैन लेने नही देता यह किसी तौर मुझे
तेरी यादों ने जो तूफान उठा रखा है

जाने वाले ने कहा था क वो लौट आएगा ज़रूर
एक इसी आस पे दरवाज़ा खुला रखा है
तेरे जाने से जो इक धूल उठी थी गम की
हम ने उस धूल को आँखों में बसा रखा है

मुझ को कल शाम से वो बहुत याद आने लगा
दिल ने मुद्दत से जो एक शख्स भुला रखा है
आखिरी बार जो आया था मेरे नाम पैगाम
मैने उसी कागज़ को दिल से लगा रखा है

शनिवार, 8 जनवरी 2011

आदाब अर्ज :है !!

व़क्त कभी बेवफ़ा नहीं होता।
हरेक दिल से बुरा नहीं होता।
जो दूसरों को कहते रहते हैं बुरा,
उन्हें ख़ुद का सच पता नहीं होता।
__________________________

अश्क हैं क़ीमती यूं न जाया करो।
बेसबब बात को न बढ़ाया करो।
मुंतजिर हैं फ़क़त हम तो दीदार के,
चाह इतनी सी है न सताया करो।
____________________________
अनजान सी मुलाक़ात पहचान बन गई।
इक मीठे से रिश्ते की जान बन गई।
दो क़दम आप चले, दो क़दम हम चले,
और दोस्ती की राह आसान बन गई।
___________________________
सितारे आसमान से चमकते हैं।
बादल दूर से ही बरसते हैं।
हम भी अजीब हैं,आप दिल में हैं,
और हम मुलाक़ात को तरसते हैं।
_______________________________
आह भरते हैं मगर रो नहीं सकते।
जान हाजिर है मगर दे नहीं सकते।
आरजू दिल में है, मगर मिल नहीं सकते,
याद करते हैं मगर कह नहीं सकते।
__________________________
कभी ख़ामोशी बहुत कुछ कह जाती है।
तड़पने के लिए सिर्फ़ याद रह जाती है।
क्या फ़र्क़ पड़ता है दिल हो या कोयला,
जलने के बाद तो सिर्फ़ राख रह जाती है।
________________________________ 

दिलो के जज्बात !!!!!!!!!!!!!!शब्दों में बयान !!

(१)   हमको दो गूंट की खैरात ही दे दो वरना ,प्यास पागल हो तो दरिया भी नही छोडती है .
और अब के जब गाँव से लौटे तो ये अहसास हुआ के, दुश्मनी खून के रिश्ते भी नही छोडती है !!  
  (२)  बढ़ गया था प्यास का अहसास दरिया देखकर ,हम पलट आये मगर पानी को प्यासा देखकर
______________________________________________________________________________
अज़ीज़ इतना ही रख्खो के जी बहल जाये , अब इस कदर ना चाहो के दम निकल जाये !!!हां हां 
जब से जले हुए घर देखे है इन आँखों ने ,रोशनी मुझको चिरागों की बुरी लगती है !
 
पसीने बाटता फिरता है हर तरफ सूरज,कभी जो हाथ लगा तो निसोड़ दूंगा उसे .
मज़ा सखा के ही माना हु मैं भी दुनिया को, समझ रही थी ऐसेही छोड़ दूंगा उसे !
 
अंधेरे चारो तरफ साय:साय:करने लगे चिराग हाथ उठा कर दुआ करने लगे ,
और सलिखा जिनको सिखाया था हमने चलने का ,वो लोग आज हमें दाए बाये करने लगे !!
 
ना हमसफ़र ना हमनशी से निकलेगा .हमारे पांव का काँटा हमी से निकलेगा !!
 
ना हमसफ़र ना हमनशी से निकलेगा .हमारे पांव का काँटा हमी से निकलेगा !!
 
जब कोई ख्याल दिल से टकराता है ॥
दिल ना चाह कर भी, खामोश रह जाता है ॥
कोई सब कुछ कहकर, प्यार जताता है॥
कोई कुछ ना कहकर भी, सब बोल जाता है ॥
 
असर है ये उनकी अदाओं का , जब वो इतने प्यारे लगते है ,
जब वो कहते है वादा है मेरा , झूटे वादे भी सच्चे लगते है ....

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

क्यूँ उठाते हो कब्र से,,,,,,,,,,,,,,

क्यूँ उठाते हो कब्र से,
मेरा जनाज़ा उठने के बाद.

अभी तो आँखे बंद की है फुर्सत से,
सारा काम निपटाने के बाद.

अब तो जाकर ये वक्त का मंज़र रुका है,
न जाने कितनी दूरियां तय करने के बाद.

कुछ पल पहले ही तो छोड़े है रिश्ते,
फिर क्यूँ आवाज़ देते हो बेघर करने के बाद.

अब तो हर शाख पर तब्बसुम दिखायी देती है,
फिर क्यों आंसू बहाते हो मेरे जाने के बाद.

यह ग़म क्यूँ कम नही होते,

बातों से भी यह ग़म क्यूँ कम नही होते,
आसुओं से दिल के कोने नाम नही होते.

थी बोहोत उम्मीद तो अपनों से इस दिल को कभी
पैर हमेशा साथ यह हमदम नही होते.

बेबसी हसने लगी है और खामोशी अब है गूंजती
की बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.

जब ख़ुशी, ख़ुशी से है जश्न मानती हर जगह
उस जगहों में क्या कभी मातम नही होते.

याद तो करते है उनको हम सदा ही रात दिन…
ख़्वाबों में उनके क्या कभी हम नही होते !!!

जिन्गदी तुझ से हर सांस पे समझौता करूँ
शौक है मुझे जीने का पर  इतना तो नही.

बेचैनियाँ समेट कर जहां की,
जब कुछ ना बन सका खुदा से, तो मेरा दिल बना दिया.

दर्द की दास्तान !!!!!!!!!!!!!

सब से छुपा के ग़म , जो वोह मुस्कुरा दिया
उस की हँसी ने तो आज मुझको रुला दिया.

लहजे से उठ रही थी हर एक दर्द की दास्तान
चेहरा बता रहा था की सब कुछ गवा दिया.

आखों में नमी थी, और आवाज़ में ठहराव था
और कह रहा था मैंने सब कुछ भुला दिया.

जाने क्या थी उसको लोगो से शिकायतें,
ना जाने क्यूँ तनहाइयों में ख़ुद को बसा दिया.

ख़ुद भी वोह हमसे बिचड़  कर तनहा हो गया
हम को भी भरी महफिल में तनहा बना गया.

ज़रूरी तो नही, के बताये लबों से दास्तान अपनी,
ज़बान एक और भी होती है इज़हार की.

अजीब सा लगता है,,,,,,,,,,,,,

वोह हमारे थे, यह बताना अजीब सा लगता है,
अब उनसे आँखें मिलाना अजीब सा लगता है

जो ज़िन्दगी में हमारे ना हो पाए कभी
अब उनका ख्वाबों में आना अजीब सा लगता है

बडे ही खुलूस से दावत उन्हों ने भेजी थी
लेकिन उनकी महफिल में जाना अजीब सा लगता है,

था कभी जिनका हाथ हमारे हाथों में
अब उनसे हाथ मिलाना अजीब सा लगता है.

दिल के हर कोने से, खुशबू आपकी आती है,,,

दिल के हर कोने से, खुशबू आपकी आती है,
जब भी तनहा होते हैं, याद आपकी आती है.

दिखा कर ख्वाब इन आंखों को, दे गए आँसू इन में आप.
कैसे छलका  दू यह आँसू, इन में भी तो रहते हो आप.

हो गए आपसे जुदा, कितने बदनसीब हैं हम.
रूठा हमसे आज हमारा खुदा, कितने फ़कीर हैं हम.

आज हम उन्हें बेवफा बताकर आए है,
उनके खातो को पानी में बहाकर आए है,
कोई निकल कर पढ़ न ले उन्हें,
इस लिए पानी में भी आग लगाकर आए है.

दिल को कहीं सुकून ना आये तो क्या करे,,,,,,,,,,,,

दिल को कहीं सुकून ना आये तो क्या करे,
तासीर किसी ग़म की रुलाये तो क्या करे.

रातों में तो ख़्वाबों में मुलाकात कर भी ले,
दिन को तुम्हारी याद सताए तो क्या करे.

हालात गरीबी के मेरे कुछ बुरे नही,
दौलत कोई ईमान को बनाए तो क्या करे.

फितरत में नही अश्क बहायें ,
मजबूरी ऐ हालात रुलाये तो क्या करे.

पहरों किसी के वास्ते रोता है दिल मेरा ,
आ कर कोई इस  दिल से ना जाए तो क्या करे.

कहते हैं लोग भूलना सीखो मिया अली ,
हम चाह के भी  भूल ना पाए तो क्या करे ...

आरज़ू अरमानों की तमन्ना न रही,
एक ख्वाहिश बाकि है उम्मीद के चिराग  से.

न करो जुस्तुजू किसी की  दिल ओ जान से तुम,
मिलती है तकदीरे भी यहाँ इत्तेफाक से...

सूरज की भी ज़रूरत न थी,,!!!

इतना रोशन था दिल मेरा मुझे सूरज की भी ज़रूरत न थी,
आज अँधेरी गलियों में " " रौशनी के लिए भटकता है.
कभी दिखती थी अपनी परछाई अंधेरों में भी मुझे,
आज मेरा ही साया मुझे उजालों तक में नहीं दीखता है.

सोचा था होगी मौत मेरी किसी अनजाने दुश्मन के हाथ से,
आज रहनुमा भी मेरा मेरे क़त्ल का शौक रखता है.
मेरा तो दिल रोता था दुश्मनों की भी मजार पर,
आज हर बावफा दोस्त मेरा मेरी ही कबर पे मिटटी रखता है.

कभी तपते रेगिस्तान की धूल में भी मैं गहरी नींद सोता था,
आज मेरा आशियाना भी मुझे सुकून से सोने नहीं देता है.
तेरा आँचल ही मेरी जीनत  था ‘माँ’ पर अब तू ख़ुद जन्नत में है,
रोना चाहता हूँ ‘माँ’ पर तेरे दर्द का एहसास रोने भी नहीं देता है.

होटों पर हँसी !!!!!!!!!!!!

कभी होती थी तनहाइयों में भी मेरे होटों पर हँसी,
आज महफिलों में भी मुझे दर्द-ऐ-दिल हुआ करता है.
मेरे जीने की आरजू करते थे मेरे दुश्मन भी कभी,
आज मेरा हमदर्द भी मेरी रुक्सती की दुआ करता है.

समझता था ख़ुद को खुशनसीब जिसे मेरे दिल में पनाह मिलती थी,
आज अश्क भी मेरी आंखों में ख़ुद को यतीम समझता है.
खूबसूरत होता था हर वो कलाम जो मैं कलम से लिकता था,
आज लहू से लिखा "एहसास" भी ख़ुद को अल्फाज़ समझता है.

कभी जीता था मेरा कातिल भी मेरी आशिकुई की उम्मीद में,
आज मेरा दिल भी मेरी ज़िन्दगी के लिए कहाँ धड़कता है.
क्या होती है बेवफाई ये तो कभी मालूम न था,
आज ज़र्रा ज़र्रा मेरा मोहब्बत के लिए तड़पता है.

सोमवार, 3 जनवरी 2011

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे,,,,बशीर बद्र !!!

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा,
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।

इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी,
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं,
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।

पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला.......बशीर बद्र

मुहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला.

घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला.

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था
फिर इसके बाद मुझे कोई अजनबी न मिला.

बहुत अजीब है ये कुर्बतों की दूरी भी
वो मेरे साथ रहा और मुझे कभी न मिला.

खुदा की इतनी बड़ी कायेनात में मैंने
बस एक शख्स को माँगा मुझे वो ही न मिला.

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं........................,बशीर बद्र

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

जी बहुत चाहता है सच बोलें
क्या करें हौसला नहीं होता ।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।

एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।

इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में ।

पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा,,बशीर बद्र

सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जायेगा,
इतना मत चाहो उसे वो बे-वफ़ा हो जायेगा।

हम भी दरिया हैं हमें अपना हुनर मालुम है,
जिस तरफ भी चल पड़ेंगे रास्ता हो जायेगा।

कितनी सच्चाई से मुझसे ज़िंदगी ने कह दीया,
तू नहीं मेरा तो कोई दूसरा हो जायेगा।

मैं खुदा का नाम ले कर पी रहा हूँ दोस्तों,
ज़हर भी इस में अगर होगा दवा हो जायेगा।

रूठ जाना तो मोहब्बत की अलामत है मगर,
क्या खबर थी मुझ से वो इतना खफा हो जायेगा।