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सोमवार, 3 जनवरी 2011

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे,,,,बशीर बद्र !!!

दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुँजाइश रहे,
जब कभी हम दोस्त हो जायें तो शर्मिन्दा न हों ।

एक दिन तुझ से मिलनें ज़रूर आऊँगा,
ज़िन्दगी मुझ को तेरा पता चाहिये ।

इतनी मिलती है मेरी गज़लों से सूरत तेरी,
लोग तुझ को मेरा महबूब समझते होंगे ।

उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो,
न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये ।

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीं,
पाँव फैलाऊँ तो दीवार में सर लगता है ।

लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलानें में।

पलकें भी चमक जाती हैं सोते में हमारी,
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते ।

तमाम रिश्तों को मैं घर पे छोड़ आया था,
फिर उस के बाद मुझे कोई अजनबी नहीं मिला ।

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