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सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

दिखाई दे हर शय में तुझे,

दिखाई दे हर शय में तुझे,
उसे ऐसे आँखों में भर लें|
महकता रहे ज़हन हमेशा,
उसे ऐसे सांसों में भर लें|
कुछ ना रहे माज़ी का बाकी,
उसे ऐसे यादों में भर लें|
सिर्फ एक लकीर हो किस्मत की,
उसे ऐसे हाथों में भर लें|
हर लफ्ज़ में घुल जाए ज़िक्र,
उसे ऐसे बातों में भर लें|
काली गुमसुम तन्हा ना बीते,
उसे ऐसे रातों में भर लें|

शनिवार, 29 जनवरी 2011

हाले - दिल सब को सुनाने आ गये ~~

हाले - दिल सब को सुनाने आ गये
खुद मज़ाक अपना उडाने आ गये

फ़ूंक दी बीमाशुदा दूकान खुद
फ़िर रपट थाने लिखाने आ गये

मार डाली पहली बीवी, क्या हुआ
फ़िर शगुन ले के दिवाने आ गये

खेत, हल और बैल गिरवी रख के हम
शहर में रिक्शा चलाने आ गये

तेल की लाइन से खाली लौट कर
बिल जमा नल का कराने आ गये

प्रिंसीपल जी लेडी टीचर को लिये
देखिए पिक्चर दिखाने आ गये

हांकिया ले कर पढाकू छोकरे
मास्टर जी को पढाने आ गये

घर चली स्कूल से वो लौट कर
टैक्सी ले कर सयाने आ गये
कांख में ले कर पडौसन को जनाब
मौज मेले में मनाने आ गये

बीवी सुन्दर मिल गई तो घर पे लोग
खैरियत के ही बहाने आ गये

शोख चितकबरी गज़ल ले कर 'कृष्णपाल 
तितलियों के दिल जलाने आ गये

गुरुवार, 27 जनवरी 2011

जज्बाती शायरी !!

परिंदों को मंजिल मिलेंगी यकीनन
यह फैले हुए उनके पर बोलते है
वोही लोग रहते है खामोश अक्सर
ज़माने में जिनके हुनर बोलते है ...
प्यार इक दर्द की अनुभूति है .
जो दिल रौता है ,तो आँखे बयां कर देती है !
 
प्यार इक ख्वाबो का व्रक्ष है ,
जो काटेंगे तो हज़ार बार उगता रहता है !!
हम ’ने दूंढ लिया है लोगों के दुःख दर्द का इलाज , क्या बुरा है जो ये अफवाह उड़ा दी जाए 
हुनर नहीं आता हमें दिलों से खेलने का , इसीलिए इश्क की बाज़ी हम हार गए ,
शायद उन्हें था मेरी ज़िंदगी से बहुत प्यार , इसीलिए मुझे जीते -- जी ही मार गए 
 
दीवाने हो गए हम जिनकी याद में , वो हम ही से बेगाने हो गए ,
शायद उन्हें तलाश है अब नए प्यार की क्यूंकि उनकी नज़र में हम पुराने हो गए .
 हीरे  की  शफक  है  तो  अँधेरे  में  चमक ,
धुप  में  आके  तो  शीशे  भी  चमक  जाते  हैं .
 भुझी  शमा  भी  जल  सकती  है ,
तूफान  से  कश्ती  भी  निकल  सकती  है ,
होके  मायूस  यूं  न  अपने  इरादे  बदल ,
तेरी  किस्मत  कभी  भी  बदल  सकती  है 
 ज़िन्दगी  में  कई  मुश्किलें  आती  हैं ,
और  इंसान  जिंदा  रहने  से  घबराता  है ,
न  जाने  कैसे  हज़ारों  काँटों  के  बीच ,
रह  कर  भी  एक  फूल  मुस्कुराता  है .
 गम  के  अंधेरो  में  खुद  को  यूह  न  बेक़रार  कर ...
गम  के  अंधेरो  में  खुद  को  यूह  न  बेक़रार  कर ....


सुभाह  ज़रूर  आएगी
सुभाह  का  इंतज़ार  कर  !
सर  झुकाओगे  तो  पत्थर  भी  देवता  हो  जायेगा ,
इतना  न  चाहो  उससे , वोह  बेवफा  हो  जायेगा .
हम  भी  दरिया  हैं , हमें  अपना  हुनर  मालूम  है ,
जिस  तरफ  चल  पडे  रास्ता  हो  जायेगा .


लहरों   को  शांत   देख   कर  यह  मत  समजना
की  समंदर  में  रवानी  नहीं  है ,
ज़ब  भी  उठेगे  तुफ्फान  बनकर  उठेगे ,
अभी  उठने  की  ठानी  नहीं  है .



 

बुधवार, 26 जनवरी 2011

एहसास !!

मुझको तो नहीं तुमको खबर हो शायद , लोग कहते हैं तुमने मुझे बर्बाद कर दिया 
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तुझे इन्ही काँटों पे चल के जाना होगा , उनके घर को बस येही एक रहगुज़र जाती है 
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कौन बहते हुए अश्कों पे नज़र रखता है , लोग हँसते हुए चेहरों को दुआ देते हैं ..
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गुज़रे ज़माने का अब ज़िक्र ही क्या , जो भी गुज़र गया अच्छा गुज़र गया …हां हां
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दिल तो क्या चीज़ है , हम रूह में उतरे होते , तुमने चाहा ही नहीं चाहने वालों की तरह …
 
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अजब तरह के लौग बसते हैं तेरे शहर में , अना में मिट जाते हैं मुहब्बत नहीं Karte 
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क्यूँ चुपके से वोह लोग उतर जाते हैं दिल में , जिन ’से किस्मत के सितारे नहीं मिलते …
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उन ’से  पुछो  कभी  चेहरे  पढ़े  हैं  तुम ’ने , जो  किताबों  की  किया  करते  हैं  बातें  अक्सर 
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..मंजिल  को  चाहा है  जब ’से , फासले  और  बड गए  हैं  तब ’से …!
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तूफ़ान  कर  रहा  था  मेरी  अजम  का  तवाफ , और  दुनिया  समझ  रही  थी  कश्ती  मेरी  भंवर  में  है
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तुझ ’से  बिछड़  कर  एक  फायदा  मुझे  भी  हुआ , तनहा  चलने  का  सलीका  तो  आ  गया  मुझे …
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हम ’ने  दूंढ  लिया  है  लोगों  के  दुःख  दर्द  का  इलाज , क्या  बुरा  है  जो  ये  अफवाह  उड़ा  दी  जाए … >>>>>>>>>>>><>>>>>>>>>><>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
कल  मिला  वक़्त  तो  जुल्फें  तेरी  सुलझाउंगा  , आज  उलझा  हूँ  ज़रा  वक़्त  को  सुलझाने  में ..!!
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मेरी  बर्बादी  पर  मुस्कुरा  के  वोह  कहने  लगे , आप ’से  किसने  कहा  था  दिल  लगाने  के  लिए …
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ए  दोस्त  मोहब्बत  के  सदमे  तनहा  ही  उठाने  पड़ते  हैं , न  दोस्त  तसल्ली  देते  हैं  न  जाम  सहारा  देता  है
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अपने  सिवा  बताओ  कभी  कुछ  मिला  भी  है  तुम्हें , हज़ार  बार  ली  हैं  तुमने  मेरे  दिल   की  तलाशियां …
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वो  कहते   हैं  की  अगर  नसीब  होगा  मेरा  तो  हम  उन्हें  ज़रूर  पाएंगे , हम  पूछते  हैं  उनसे  अगर  हम  बदनसीब  हुए  तो .. उनके  बिना  कैसे  जी  पाएंगे ..
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गुरुवार, 20 जनवरी 2011

राहत इन्दोरी !!

अपनी पहचान मिटने को कहा जाता है.
बस्तिया छोड़ के जाने को कहा जाता है
पत्तिया रोज़ गिरा जाती है जहरीली हवा
और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है
कोई मौसम हो दुःख सुख में गुजरा कौन करता है |
परिंदों की तरह सबकुछ गवारा कौन करता है |
घरो की राख फिर देखेंगे पहले ये देखना है,
घरों को फूंक देने का इशारा कौन करता |

जिसे दुनिया कहा जाता है कोठे की तवाइफ़ है |
इशारा किसको करती है, नजारा कौन करता है | 

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जिहालातो के अंधेरे मिटा के लौट आया |

मै आज सारी किताबे जलाके लौट आया |

वो अब भी बैठी सिसककर रो  रही होगी |

मै अपना हाथ हवा में हिलाकर लौट आया |


ख़बर मिली है की सोना निकल रहा है वहा

मै जिस जमीं पे ठोकर लगाके आया |
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मैं चाहता था ख़ुद से मुलाक़ात हो मगर
आईने मेरे क़द के बराबर नही मिले ……..’

‘मुकाबिल आइना है और तेरी गुलकारियां जैसे…….
सिपाही कर रहा हो ज़ंग की तय्यारियां जैसे……… ‘

‘मैंने मुल्कों की तरह लोगों के दिल जीते हैं ….
ये हुकूमत किसी तलवार की मोहताज नही…


लोग होंठों पे सजाये हुए फिरते है मुझे
मेरी शोहरत किसी अखबार की मोहताज नही……’

‘जितना देख आये हैं अच्छा है यही काफ़ी है ……
अब कहाँ जायें के दुनिया है यही काफ़ी है..’!!

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अशार !!(४)

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों !!
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सर पे धुप आयी तो दरख्त बन गया मैं
तेरी ज़िन्दगी में अक्सर मैं कोई वजह रहा हूँ
कभी दिल में आरजू सा , कभी मुंह में बददुआ सा
मुझे जिस तरह भी चाहा , मैं उस तरह रहा हूँ !!

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लफ्ज़ एहसास से छाने लगे , ये तो हद है
लफ्ज़ मन भी छुपाने लगे , ये तो हद है

आप दीवार गिराने के लिया आये थे
आप दीवार उठाने लगे , ये तो हद है

खामोशी शोर से सुनते थे की घबराती है
खामोशी शोर मचाने लगे , ये तो हद है !!

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ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से
देखो बादल कहाँ आज बरसे।

फिर हुईं धड़कनें तेज़ दिल की
फिर वो गुज़रे हैं शायद इधर से।!!

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ये इंतजार ग़लत है की शाम हो जाए
जो हो सके तो अभी दौर-ऐ-जाम हो जाए

खुदा-न ख्वास्ता पीने लगे जो वाइज़ भी
हमारे वास्ते पीना हराम हो जाए

मुझ जैसे रिंद को भी तू ने हश्र में या रब
बुला लिया है तो कुछ इंतज़ाम हो जाए


वो सहन-ऐ-बाग़ में आए हैं माय -काशी के लिए
खुदा करे के हर इक फूल जाम हो जाए

मुझे पसंद नहीं इस पे गाम -जान होना
वो रह-गुज़र जो गुज़र-गाह-ऐ-आम हो जाए !!

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कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं !!

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहां
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं


जाने कुआ टूटा है पैमाना दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं  !!

बुधवार, 19 जनवरी 2011

ज़रा सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा !

ज़रा सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा
नजाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा
सफ़ीना हो के हो पत्थर हैं हम अंज़ाम से वाकिफ़
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा
समन्दर के सफ़र में किस्मतें पहलु बदलती हैं
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा!!

मंगलवार, 18 जनवरी 2011

वो लोग बोहत खुश-किस्मत थे !!

वो लोग बोहत खुश-किस्मत थे
जो इश्क़ को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे

हम जीते जी मसरूफ रहे
कुछ इश्क़ किया, कुछ काम किया
काम इश्क के आड़े आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग कर हमने

दोनों को अधूरा छोड दिया.....!!

नसीब आजमाने के दिन आ रहे हैं !!

नसीब आजमाने के दिन आ रहे हैं
क़रीब उनके आने के दिन आ रहे हैं

जो दिल से कहा है, जो दिल से सुना है
सब उनको सुनाने के दिन आ रहे हैं

अभी से दिल-ओ-जाँ सर-ए-राह रख दो
कि लुटने लुटाने के दिन आ रहे हैं


टपकने लगी उन निगाहों से मस्ती
निगाहें चुराने के दिन आ रहे हैं

सबा फिर हमें पूछती फिर रही है
चमन को सजाने के दिन आ रहे हैं

चलो कृष्णपाल  फिर से कहीं दिल लगाएं
सुना है ठिकाने के दिन आ रहे हैं.........................!!

एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये !!मंजर भोपाली !

एक नया मोड़ देते हुए फिर फ़साना बदल दीजिये
या तो खुद ही बदल जाइए या ज़माना बदल दीजिये

तर निवाले खुशामद के जो खा रहे हैं वो मत खाइए
आप शाहीन बन जायेंगे आब-ओ-दाना बदल दीजिये

अहल-ए-हिम्मत ने हर दौर मैं कोह* काटे हैं तकदीर के
हर तरफ रास्ते बंद हैं, ये बहाना बदल दीजिये
[कोह=पहाड़]


तय किया है जो तकदीर ने हर जगह सामने आएगा
कितनी ही हिजरतें कीजिए या ठिकाना बदल दीजिये

हमको पाला था जिस पेड़ ने उसके पत्ते ही दुश्मन हुए
कह रही हैं डालियाँ, आशियाना बदल दीजिये  !!!!!!!!!!!!!!१(मंजर भोपाली )

कही सुनी पे बोहत एतबार करने लगे !

कही सुनी पे बोहत एतबार करने लगे
मेरे ही लोग मुझे संगसार* करने लगे
[*संगसार=पत्थर मारना, getting brickbats]

पुराने लोगों के दिल भी हैं खुशबुओं की तरह
ज़रा किसी से मिले, एतबार करने लगे

नए ज़माने से आँखें नहीं मिला पाये
तो लोग गुज़रे ज़माने से प्यार करने लगे


कोई इशारा, दिलासा न कोई वादा मगर
जब आई शाम तेरा इंतज़ार करने लगे

हमारी सादामिजाजी कि दाद दे कि तुझे
बगैर परखे तेरा एतबार करने लगे !!!!!!!!!!!!!!!!वसीम बरेलवी !!
कुछ दिन तो बसो मेरी आँखों में
फिर ख्वाब अगर हो जाओ तो क्या

कोई रंग तो दो मेरे चेहरे को
फिर ज़ख्म अगर महकाओ तो क्या

जब हम ही न महके फिर साहब
तुम बाद-ए-सबा कहलाओ तो क्या

एक आईना था, सो टूट गया
अब खुद से अगर शरमाओ तो क्या

दुनिया भी वही और तुम भी वही
फिर तुमसे आस लगाओ तो क्या

मैं तनहा था, मैं तनहा हूँ
तुम आओ तो क्या, न आओ तो क्या


जब देखने वाला कोई नहीं
बुझ जाओ तो क्या, गहनाओ तो क्या

एक वहम है ये दुनिया इसमें
कुछ खो'ओ तो क्या और पा'ओ तो क्या

है यूं भी ज़ियाँ और यूं भी ज़ियाँ
जी जाओ तो क्या मर जाओ तो क्या !!

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा !!

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा


कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता कृष्णपाल 

मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा

माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नही,,,,,,,

माना तेरी नज़र में तेरा प्यार हम नही,
कैसे कहें की तेरे तलबगार हम नही………..
ख़ुद को जला के ख़ाक कर डाला,मिटा दिया,
लो अब तुम्हारी राह में दीवार हम नही…….
जिस को सँवारा हमने तमन्नाओं के ख़ून से,
गुलशन में उस बहार के हक़दार हम नही……..
धोखा दिया है ख़ुद को मुहोब्बत के नाम से,
कैसे कहें की तेरे गुनाहगार हम नही……..

ग़रीब क्या इश्क़ करेगा !!

ग़रीब क्या इश्क़ करेगा,क्या इश्क़ का इकरार करेगा,
क्यूं जीना अपना जानबूझकर दुश्वार करेगा…. 

दो पैसे कमा के,प्यार से दाल रोटी खाता है,
इश्क़ के चक्कर मैं क्यूं ख़ुद को बेकार करेगा…..

मेहनत करके थक्क हार के,अच्छी नींद वो सोता है,
क्यूं रातों मैं तारे गीन गीनकर वो व्यापार करेगा…..

इश्क़ की गलियों मैं,दिल उसका अगर टूट जाए तो,
ऐसे बेबस प्रेमी का सहयोग  क्या संसार करेगा 

पर यह  क़ुदरत का खेल भी देखो निराला,
इश्क़ उसे भी हो जाए तो,फिर क्या वो लाचार करेगा……!!!!!!!!!!

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये !!

                                 कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
                                 तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आखिर
मोहबात की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये

समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
 हवायेँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये

मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा 
                                   परिंदा आसमाँ छूने में जब नाक़ाम हो जाये
                                उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
                                 न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये  !!!!!

          

एक ग़लतफ़हमी थी !!

एक  ग़लतफ़हमी  थी  जो  आज  मंज़ूर  हो  गई ,
तू  मेरी  नज़रों  से  और  भी  ज्यादा  दूर  हो  गई .

ये  तेरी  आँखें  जिसमे  कभी  शराब  से  ज्यादा  नशा  था
आज  वक़्त  की  मार  से  बेनूर  हो  गई .

तेरी  एक   हंसी  पे  कितने  ही  हो  जाते  थे  कुर्बान ,
किसके  ग़म  में  तू  आज  रोने  को  मजबूर  हो  गई .

डोली  उठती  तो  है  पर  एक  मय्यत  साथ  लेकर .
इश्क  की  बेबसी  आज  दस्तूर  हो  गई !!!!.