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मंगलवार, 18 जनवरी 2011

कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये !!

                                 कभी तो आसमाँ से चांद उतरे जाम हो जाये
                                 तुम्हारे नाम की इक ख़ूबसूरत शाम हो जाये

हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाये
चराग़ों की तरह आँखें जलें जब शाम हो जाये

अजब हालात थे यूँ दिल का सौदा हो गया आखिर
मोहबात की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये

समंदर के सफ़र में इस तरह आवाज़ दो हमको
 हवायेँ तेज़ हों और कश्तियों में शाम हो जाये

मैं ख़ुद भी एहतियातन उस गली से कम गुज़रता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिये बदनाम हो जाये

मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा 
                                   परिंदा आसमाँ छूने में जब नाक़ाम हो जाये
                                उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
                                 न जाने किस गली में ज़िन्दगी की शाम हो जाये  !!!!!

          

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