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गुरुवार, 6 जनवरी 2011

क्यूँ उठाते हो कब्र से,,,,,,,,,,,,,,

क्यूँ उठाते हो कब्र से,
मेरा जनाज़ा उठने के बाद.

अभी तो आँखे बंद की है फुर्सत से,
सारा काम निपटाने के बाद.

अब तो जाकर ये वक्त का मंज़र रुका है,
न जाने कितनी दूरियां तय करने के बाद.

कुछ पल पहले ही तो छोड़े है रिश्ते,
फिर क्यूँ आवाज़ देते हो बेघर करने के बाद.

अब तो हर शाख पर तब्बसुम दिखायी देती है,
फिर क्यों आंसू बहाते हो मेरे जाने के बाद.

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