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बुधवार, 12 जनवरी 2011

अपनों ने लगाई चोट तो थोड़ा परेशान से रहे.....

हम उनकी ज़िन्दगी में सदा अंजान से रहे,
और वो हमारे दिल में कितनी शान से रहे.....

ज़ख्म गैरों के तो बेअसर थे हमारी हस्ती पर,

अपनों ने लगाई चोट तो थोड़ा परेशान से रहे.....

चालाकियां ज़माने की देखा किये सहा किये,

उम्र भर लेकिन वही सादा-दिल इंसान से रहे.....


गरजमंद थे हम किस मुंह से शिकायत करते,
उलटे खफा हमेशा अपने दिल ऐ नादान से रहे..

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