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गुरुवार, 6 जनवरी 2011

यह ग़म क्यूँ कम नही होते,

बातों से भी यह ग़म क्यूँ कम नही होते,
आसुओं से दिल के कोने नाम नही होते.

थी बोहोत उम्मीद तो अपनों से इस दिल को कभी
पैर हमेशा साथ यह हमदम नही होते.

बेबसी हसने लगी है और खामोशी अब है गूंजती
की बंद कमरों में कभी कोई मौसम नही होते.

जब ख़ुशी, ख़ुशी से है जश्न मानती हर जगह
उस जगहों में क्या कभी मातम नही होते.

याद तो करते है उनको हम सदा ही रात दिन…
ख़्वाबों में उनके क्या कभी हम नही होते !!!

जिन्गदी तुझ से हर सांस पे समझौता करूँ
शौक है मुझे जीने का पर  इतना तो नही.

बेचैनियाँ समेट कर जहां की,
जब कुछ ना बन सका खुदा से, तो मेरा दिल बना दिया.

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