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गुरुवार, 6 जनवरी 2011

दर्द की दास्तान !!!!!!!!!!!!!

सब से छुपा के ग़म , जो वोह मुस्कुरा दिया
उस की हँसी ने तो आज मुझको रुला दिया.

लहजे से उठ रही थी हर एक दर्द की दास्तान
चेहरा बता रहा था की सब कुछ गवा दिया.

आखों में नमी थी, और आवाज़ में ठहराव था
और कह रहा था मैंने सब कुछ भुला दिया.

जाने क्या थी उसको लोगो से शिकायतें,
ना जाने क्यूँ तनहाइयों में ख़ुद को बसा दिया.

ख़ुद भी वोह हमसे बिचड़  कर तनहा हो गया
हम को भी भरी महफिल में तनहा बना गया.

ज़रूरी तो नही, के बताये लबों से दास्तान अपनी,
ज़बान एक और भी होती है इज़हार की.

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