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मंगलवार, 11 जनवरी 2011

चंद अशार !!!

 (१) ना तार्रूफ ना ताल्लुक है, मगर दिल अक्सर
नाम सुनता है तुम्हारा उछल पड़ता है


 (२) रोज़ तारों की नुमाईश में खलल पड़ता है
चांद पागल है अंधेरे में निकल पड़ता है
उनकी याद आई है, सांसो ज़रा आहिस्ता चलो
धड़कनों से भी इबादत में खलल पड़ता है 


 (३)दवा की तरह खाते जाईयें गाली बुजुर्गों की,
जो अच्छे फल है उनका ज़ायका अच्छा नहीं होता


 (४)हमारी ज़िन्दगी का इस तरह हर साल कटता है
कभी गाड़ी पलटती है, कभी तिरपाल कटता है
दिखाते हैं पड़ौसी मुल्क़ आँखें, तो दिखाने दो
कभी बच्चों के बोसे से भी माँ का गाल कटता है?

(5)तुझ से बिछड़ा तो पसन्द आ गई बेतरतीबी
इस से पहले मेरा कमरा भी गज़ल जैसा था

(६)मैं चाहता हूँ फिर से वो दिन पलट आयें
कि माँ के चुल्लू को मेरा गिलास होना पड़े

(७)शिकायतें तो मुझे मौसम-ए-बहार से है
खिज़ान तो फूलने फलने के बाद आता है

(८)वो मुझको छोड़ न देता, तो और क्या करता
मैं वो किताब हूँ, जिसके कईं वर्क ना रहे

(९) कृष्णपाल माँ के सामने कभी खुलकर नहीं रोना,
जहाँ बुनियाद हो, इतनी नमी अच्छी नहीं होती

(१०)तेरे दामन में सितारे हैं तो होंगे ऐ फलक
मुझको मेरी मां की मैली ओढ़नी अच्छी लगी

(11)उलझता रहता हूँ यूँ तुम्हारी यादों से
के जैसे बच्चे के हाथों में ऊन आ जाये

(12)आंखें हैं कि उन्हें घर से निकलने नहीं देती
आंसू हैं कि सामान-ए-सफर बांधे हुए हैं

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