लोकप्रिय पोस्ट

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें !!

मुझ से मिलती हैं तो मिलती हैं चुरा कर आँखे
फिर वो किसके लिए रखती है सज़ा कर आँखें

मैं उन्हें देखता रहता हूँ जहाँ तक देखूं
एक वो हैं, के जो देखे ना, उठा कर आँखें

उस जगह आज भी बैठा हूँ अकेला यारो
जिस जगह छोड़ गये थे वो मिला कर आँखें


मुझ से नज़रें वो अक्सर चुरा लेता है सागर
मैंने कागज़ पे भी देखी हैं बना कर आँखें !!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें