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गुरुवार, 6 जनवरी 2011

सूरज की भी ज़रूरत न थी,,!!!

इतना रोशन था दिल मेरा मुझे सूरज की भी ज़रूरत न थी,
आज अँधेरी गलियों में " " रौशनी के लिए भटकता है.
कभी दिखती थी अपनी परछाई अंधेरों में भी मुझे,
आज मेरा ही साया मुझे उजालों तक में नहीं दीखता है.

सोचा था होगी मौत मेरी किसी अनजाने दुश्मन के हाथ से,
आज रहनुमा भी मेरा मेरे क़त्ल का शौक रखता है.
मेरा तो दिल रोता था दुश्मनों की भी मजार पर,
आज हर बावफा दोस्त मेरा मेरी ही कबर पे मिटटी रखता है.

कभी तपते रेगिस्तान की धूल में भी मैं गहरी नींद सोता था,
आज मेरा आशियाना भी मुझे सुकून से सोने नहीं देता है.
तेरा आँचल ही मेरी जीनत  था ‘माँ’ पर अब तू ख़ुद जन्नत में है,
रोना चाहता हूँ ‘माँ’ पर तेरे दर्द का एहसास रोने भी नहीं देता है.

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