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रविवार, 2 जनवरी 2011

मेरे अरमानो के बदरंग तनहा मकान !!

तेरी  पलकें  झुकी  तो  कँवल  हो  गयी
तुमने  तस्सवुर  किया   और  ग़ज़ल  हो  गयी

मेरे  अरमानो  के  बदरंग  तनहा  मकान
तेरी  आहात  हुई  तो  महल  हो  गए

एक  मुद्दत  से  खुद  को  बचाया  था  मगर
उनसे  नज़रें  मिली  और  कतल  हो  गए

हमने  सदियों  किया  जिसका  इंतज़ार
वो  यूँ  आकर  गए  जैसे  पल  हो  गए

मेरी  रातो   को  नए  हमसफ़र  मिल  गए
चाँद  तारे  तेरे  हमशकल  हो  गए

अब  न  अपना  पता  न  किसीकी  खबर  है
हम  भी  दीवाने  से  आज  कल  हो  गए !!!!!!!!!!

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