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सोमवार, 3 जनवरी 2011

शायरी @@

है तिनके की भी एहमियत इस जहाँ में,
वीरान हो जाती है शाख जब पत्ते झड़ जाते हैं।

कौन पूछता है पिंजरे में बंद इन पंछियों को,
याद वोह ही आते हैं जो उड़ जाते हैं।
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आप की खातिर अगर हम लूट भी लें आसमाँ
क्या मिलेगा चंद चमकीले से शीशे तोड़ के

चाँद चुभ जायेगा उंगली में तो खून आ जायेगा
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